स्वामी दयानंद सरस्वती का स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया: कमलेश शास्त्री

आजादी की लड़ाई में आर्य समाज विचारधारा के क्रांतिकारियों ने अहम भूमिका निभाई।

आज देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है और इस अमृत महोत्सव के माध्यम से सभी देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले वीर बलिदानियों को याद कर रहे हैं क्योंकि उनके कारण ही आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं। देश के लिए हजारों क्रांतिकारियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया और सैकड़ों संस्थाओं ने भी आजादी की लड़ाई में अपनी आहुति डाली लेकिन इसमें सबसे मुख्य आहुति आर्य समाज की रही। महर्षि दयानंद सरस्वती ने 1875 में आर्य समाज की स्थापना के साथ ही आजादी का बिगुल बजा दिया।
संसार का उपकार करने के लिए 10 अप्रैल 1875 को लगभग 148 वर्ष के अंतराल में आर्य समाज ने देश, धर्म और जाति को बचाने के लिए अनेकों अनेक जनआंदोलन किए और इस दौरान लोगों में आजादी की भावना को जागृत करने का कार्य किया। लाला लाजपत राय, सरदार भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला, वीर सावरकर आदि आर्य समाज और महर्षि दयानंद सरस्वती से बेहद प्रेरित रहे हैं। न केवल सामाजिक क्षेत्र में बल्कि देश को आजाद कराने में आर्य समाज की महती भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। महर्षि दयानंद सरस्वती ने गुलामी की बेड़ियों में जकड़े भारत को आजाद कराने के लिए जागरूकता का जो शंखनाद किया और उस शंखनाद के माध्यम से न जाने कितने वीर बहादुरों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए देश की आजादी को ही अपना प्रथम उद्देश्य बना लिया। तब महर्षि दयानंद सरस्वती ने कहा था कि विदेशी राजा देश के बारे में कभी अच्छे विचार नहीं रख सकता। स्वामी दयानंद ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन की 1857 में हुई क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लोकमान्य तिलक ने भी उन्हें स्वराज का पहला संदेशवाहक कहा था। देश की आजादी में अहम योगदान देने वाले महान बलिदानी लाला लाजपत राय ने कहा था आर्य समाज मेरी धर्म माता ऋषि दयानंद मेरे धर्म पिता हैं। आर्य समाज के गुरुकुलों में ही क्रांतिकारियों के छिपने का स्थान हुआ करता था। काकोरी कांड को अंजाम देने से पूर्व दो दिन पहले काकोरी कांड की योजना मुरादाबाद आर्य समाज में ही बनाई गई थी। इसमें चंद्रशेखर आजाद, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लहरी आदि क्रांतिकारी उपस्थित थे। जिस कक्ष में लोग रुके थे, उस कक्ष का नाम आज शहीद भवन है। प्रसिद्ध क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह विशुद्ध आर्य समाजी थे और इनके पिता किशन सिंह भी आर्य समाजी थे। भगत सिंह के विचारों पर भी आर्य समाज के संस्कारों की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है। आर्य समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ही समाज सुधार और देश को गुलामी से मुक्त कराना था। स्वामी दयानंद जानते थे कि वेदों को छोड़ने के कारण ही भारत की यह दुर्दशा हो चली है इसीलिए उन्होंने वैदिक धर्म की पुन:स्थापना की। उन्होंने मुंबई की काकड़बाड़ी में 7 अप्रैल 1875 में आर्य समाज की स्थापना कर हिन्दुओं में जातिवाद, छुआछूत की समस्या मिटाने का भरपूर प्रयास किया। गांधीजी ने भी आर्य समाज का समर्थन किया था। उन्होंने कहा भी था कि मैं जहां-जहां से गुजरता हूं, वहां-वहां से आर्य समाज पहले ही गुजर चुका होता है। आर्य समाज ने लोगों में आजादी की अलख जगा दी थी। आर्य समाज के कारण ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर स्वदेशी आंदोलन का प्रारंभ हुआ था। कई गुरुकुलों के संस्थापक और महर्षि दयानंद के विचारों को गुरुकुल शिक्षा पद्धति के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का जिम्मा उठाने वाले स्वामी श्रद्धानंद द्वारा देश की आजादी के लिए कार्यों को भुलाया नहीं जा सकता। स्वामी श्रद्धानंद का मूल नाम मुंशीराम था। वे भारत के महान राष्ट्रभक्त संन्यासियों में अग्रणी थे।
स्वामी श्रद्धानंद ने देश को अंग्रेजों की दासता से छुटकारा दिलाने और दलितों को उनका अधिकार दिलाने के लिए अनेक कार्य किए। पश्चिमी शिक्षा की जगह उन्होंने वैदिक शिक्षा प्रणाली पर जोर दिया। इनके गुरु स्वामी दयानंद सरस्वती थे। उन्हीं से प्रेरणा लेकर स्वामीजी ने आजादी और वैदिक प्रचार का प्रचंड रूप में आंदोलन खड़ा कर दिया था जिसके चलते गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी। धर्म, देश, संस्कृति, शिक्षा और दलितों का उत्थान करने वाले युगधर्मी महापुरुष श्रद्धानंद के विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। उनके विचारों के अनुसार स्वदेश, स्व-संस्कृति, स्व-समाज, स्व-भाषा, स्व-शिक्षा, नारी कल्याण, दलितोत्थान, वेदोत्थान, धर्मोत्थान को महत्व दिए जाने की जरूरत है इसीलिए वर्ष 1901 में स्वामी श्रद्धानंद ने अंग्रेजों द्वारा जारी शिक्षा पद्धति के स्थान पर वैदिक धर्म तथा भारतीयता की शिक्षा देने वाले संस्थान ‘गुरुकुल’ की स्थापना की। हरिद्वार के कांगड़ी गांव में ‘गुरुकुल विद्यालय’ खोला गया जिसे आज ‘गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय’ नाम से जाना जाता है। इसके अलावा भी आर्य समाज के हजारों हजार ऐसे धुरंधर हुए हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए बेहद योगदान दिया और आज जब पूरा देश आजादी का अमृत काल मना रहा है तो ऐसे में आर्य समाज के बलिदानों को भी स्मृति पटल पर जीवित रखा जाना चाहिए। महर्षि दयानंद सरस्वती की 200 वीं जन्म जयंती के विश्वव्यापी कार्यक्रमों का शंखनाद हो चुका है और इसी श्रंखला में अनेकों कार्यक्रमों के माध्यम से आर्य समाज और महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा देश और समाज के लिए दिए गए योगदान को याद किया जा रहा है। हमें भी उन वीर बलिदानी महापुरुषों के सपनों का भारत बनाने में अपना योगदान देना चाहिए। अगर हम वैसा देश बनाने में कामयाब होते हैं, जैसे वह देश को देखना चाहते थे, तो यह सही मायनों में उन महापुरुषों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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