डी ए वी शताब्दी महाविद्यालय में आर्य समाज का 148वां स्थापना दिवस बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया
आर्य समाज स्थापना दिवस एवं नव संवत्सर के आगमन पर हुआ यज्ञ का आयोजन
फरीदाबाद। डी ए वी शताब्दी महाविद्यालय फरीदाबाद की आर्य समाज इकाई द्वारा नव संवत्सर 2080 के आगमन तथा आर्य समाज के 148वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में यज्ञ एवं प्रवचनों का कार्यक्रम किया गया। इस अवसर पर आर्य सिद्धान्तोपदेशक श्री हरिओम शास्त्री जी यज्ञाचार्य की भूमिका में रहे। इस यज्ञ में महाविद्यालय के सभी प्राध्यापकों एवं कर्मचारियों के साथ रोशनी संस्था के बच्चों ने भी भाग लिया। यज्ञ के उपरांत शास्त्री जी ने नव संवत्सर के वैज्ञानिक महत्व से सभी को परिचित कराया। उन्होंने कहा कि हमें अपनी संस्कृति को विस्मृत नही करना चाहिए। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही परमपिता परमात्मा ने सृष्टि का सृजन प्रथम बार किया था।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन अयोध्या में श्रीरामजी का विजयोत्सव मनाने के लिए अयोध्यावासियों ने घर-घर के द्वार पर धर्मध्वज फहराया। इसके प्रतीकस्वरूप भी इस दिन धर्मध्वज फहराया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुडी कहते हैं। इस भारतीय नववर्ष पर नए पुष्प पल्लव आदि का जन्म होता है प्रकृति को शोभा दर्शनीय होती है। प्रकृति अपने नए रंग में सभी का स्वागत करती है। पाश्चात्य नववर्ष में ऐसी कोई विशेषता नही है। महाविद्यालय की कार्यकारी प्राचार्या डॉ सविता भगत ने सभी को अपनी शुभ कामनायें दी। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि वैदिक धर्म के प्रचारार्थ व मानव मात्र के उपकार के लिए महर्षि दयानंद सरस्वती ने मुंबई में डा. मानिक चंद की वाटिका में चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा संवत 1932 में तदनुसार 10 अप्रैल 1875 को आर्य समाज की स्थापना की थी।आर्य समाज की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य समाज मे व्याप्त बुराइयों का खंडनकर नवजागरण की ओर देश को ले जाना था।
आर्य समाज आज भी उनके संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत है। यह संस्था भारत ही नही अपितु विश्व के लगभग 34 देशों में अपने कार्य कर रही है। उन्होंने सभी से अनुरोध किया कि वे अपने स्वजनों व नई पीढ़ी को वैदिक विचारों तथा संस्कारों से अवश्य परिचित कराएं।कार्यक्रम के समापन अवसर पर सभी को अंधविश्वास से दूर रहकर वैदिक मार्ग पर चलने तथा वैदिक विचारों को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प भी दिलाया गया।