पांचवे नवरात्रि पर मां वैष्णो देवी मंदिर में हुई माता स्कंद की भव्य पूजा

Faridabad  : नवरात्रों की पांचवें दिन माता वैष्णो देवी मंदिर में माता स्कंद की पूजा की गई. प्रातः कालीन आरती का शुभारंभ मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने करवाया। इस अवसर पर मंदिर में सुबह से ही भक्तों की लाइन लगनी शुरू हो गई। सभी श्रद्धालुओं ने माता स्कंद की पूजा अर्चना कर अपनी अरदास लगे। मंदिर में उद्योगपति के सी लखानी, गुलशन भाटिया, विमल कुमार, विनोद कुमार, नेतराम और काशीराम ने मां की दरबार में अपनी हाजिरी लगाई। इस अवसर पर मंदिर संस्थान की प्रधान जगदीश भाटिया ने श्रद्धालुओं को माता स्कंद की महिमा से अवगत करवाया। श्री भाटिया ने बताया कि

नवरात्रि के पांचवें दिन स्‍कंदमाता की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का पांचवा रूप स्‍कंदमाता कहलाता है। प्रेम और ममता की मूर्ति स्‍कंदमाता की पूजा करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होता है और मां आपके बच्‍चों को दीर्घायु प्रदान करती हैं। भगवती पुराण में स्‍कंदमाता को लेकर ऐसा कहा गया है कि नवरात्र के पांचवें दिन स्‍कंद माता की पूजा करने से ज्ञान और शुभ फलों की प्राप्ति होती है। मां ज्ञान, इच्‍छाशक्ति, और कर्म का मिश्रण हैं। जब शिव तत्‍व का शक्ति के साथ मिलन होता है तो स्‍कंद यानी कि कार्तिकेय का जन्‍म होता है।

आइए जानते हैं स्‍कंदमाता की पूजाविधि, पूजा मंत्र, आरती और भोग।भगवान शिव की अर्द्धांगिनी के रूप में मां ने स्‍वामी कार्तिकेय को जन्‍म दिया था। स्‍वामी कार्तिकेय का दूसरा नाम स्‍कंद है, इसलिए मां दुर्गा के इस रूप को स्‍कंदमाता कहा गया है। जो कि प्रेम और वात्‍सल्‍य की मूर्ति हैं।मां स्‍कंदमाता चार भुजाओं वाली देवी हैं जो कि स्‍वामी कार्तिकेय को अपनी गोद में लेकर शेर पर विराजमान हैं। मां के दोनों हाथों में कमल शोभायमान हैं।

इस रूप में मां समस्त ज्ञान, विज्ञान, धर्म, कर्म और कृषि उद्योग सहित पंच आवरणों से समाहित विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहलाती हैं। मां के चेहरे पर सूर्य के समान तेज है। स्‍कंदमाता की पूजा में धनुष बाण अर्पित करना भी शुभ माना जाता है। श्री भाटिया ने कहा कि जो भी भक्त सच्चे मन से माता स्कंद की पूजा कर अपनी अरदास लगता है वह आवश्यक पूर्ण होती है।

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