ट्रैक्टर ट्रॉली के नीचे कुचले पैर का डॉक्टरों ने किया सफल इलाज, ठीक होने पर युवक हॉस्पिटल से अपने पैरों पर चलकर घर गया

· पैर में बैक्टीरियल इन्फेक्शन और फंगस इन्फेक्शन के कारण बढ़ रहा था मरीज की जान को खतरा

फरीदाबाद:  हाल ही में मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में प्लास्टिक एवं रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी टीम ने एक्सीडेंट के बाद राइट (दायां) पैर में गंभीर इन्फेक्शन के साथ आए मथुरा निवासी 27 वर्षीय कृष्ण कुमार का बेहतरीन इलाज कर न केवल उसे विकलांग होने से बचाया बल्कि उसकी जान बचाने में भी बड़ी सफलता हासिल की है। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में प्लास्टिक एवं रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. कावेश्वर घुरा ने बताया कि एक्सीडेंट होने के 10 दिन बाद मरीज हमारे पास आया। उस समय मरीज को हाई ग्रेड फीवर था। जाँच करने पर हमें पता चला कि मरीज के पैर में बैक्टीरियल सेप्टिसीमिया (गंभीर रक्त संक्रमण) भी है और फंगल सेप्टिसीमिया भी है इसलिए एंटी फंगल और एंटी बैक्टीरियल दवाइयां शुरू की गई और नियमित रूप से पट्टियाँ की गईं। हमने लगभग एक महीने में मरीज को पूरी तरह से ठीक कर दिया और उसके पैर को भी कटने से बचा लिया। ठीक होने के बाद मरीज हॉस्पिटल से अपने पैरों पर चलकर घर गया। अगर मरीज का सही से इलाज न होता तो मरीज को जान जा सकती थी।

ट्रैक्टर ट्रॉली के टायर के नीचे आने से मरीज के पैर की पूरी थाई, बटक (कूल्हे का पिछला मांसल हिस्सा), पॉटी वाली जगह और घुटने के जोड़ से नीचे की सारी जगह कुचल गई थी। मरीज के पैर की हड्डी सुरक्षित थी लेकिन बटक, कमर से लेकर थाई तक सारी चमड़ी हड्डी से अलग होकर संक्रमित हो गई थी। ब्लड वेसल्स बच गई थीं। शुरुआत में मरीज को फरीदाबाद शहर के किसी अन्य बड़े हॉस्पिटल में ले जाया गया, वहां पर उसके पैर को बचाने के लिए कई बार कोशिश की गई लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। मामला काफी जटिल हो गया था।

डॉ. कावेश्वर घुरा ने कहा कि यह केस हमारे लिए भी बहुत ज्यादा चुनौती भरा था। मरीज के पैर में फंगस इतने अधिक गंभीर रूप से लग गया था कि यह कंट्रोल नहीं हो रहा था। मरीज आईसीयू में भी लगभग दो हफ्ते रहा। फंगस इन्फेक्शन के साथ-साथ बैक्टीरियल इन्फेक्शन भी लगातार बना हुआ था क्योंकि एक्सीडेंट के समय सारी मांसपेशियां हड्डी से अलग हो गई थीं। फंगस इन्फेक्शन लग जाने पर मांसपेशियां मर जाती हैं और फिर मरीज को ठीक करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। एक समय ऐसा भी आया था कि मरीज की जान बचाने के लिए उसके पैर को कुल्हे के जॉइंट से काटने की नौबत भी आ गई थी लेकिन मरीज की इच्छा शक्ति और हमारी लगभग एक महीने की कड़ी मेहनत के बाद हम मरीज को पूरी तरह ठीक करने में कामयाब हो गए।

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