राम जन्म के लिए किए गए पुत्रेष्टि यज्ञ का आयुर्वेदा के साथ क्या सम्बन्ध है? – डॉ चंचल शर्मा
आप जब भी एक स्वस्थ इंसान के बारे में सोचते हैं तो पहला ख्याल आता है निरोग होना लेकिन वास्तविकता तो यह है कि एक व्यक्ति का पूर्णतः स्वस्थ होना उसके शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्थिति पर निर्भर करता है। आदिकाल से ज्योतिष और आयुर्वेदा का गहरा सम्बन्ध रहा है। त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ जो उस समय के प्रतापी राजा माने जाते थे। उनके पास किसी प्रकार की कमी नहीं थी किन्तु तीन रानियों के होते हुए भी उन्हें संतानसुख की प्राप्ति नहीं हो रही थी जिस वजह से राजा काफी चिंतित रहते थे। जब उन्होंने वैद्य, ऋषि, मुनियों से इस विषय पर चर्चा की तो सभी ने उन्हें संतानप्राप्ति हेतु पुत्रेष्टि यज्ञ कराने की सलाह दी।
पुत्रेष्टि यज्ञ क्या होता है और इसका क्या महत्त्व है?
आशा आयुर्वेदा की डायरेक्टर तथा स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ चंचल शर्मा इस सम्बन्ध में बताती हैं कि पुत्रेष्टि यज्ञ एक ऐसा अनुष्ठान है जिसे कराने से निःसंतान दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है। इसका उल्लेख रामायण में भी किया गया है। धीरे धीरे आधुनिकता की होड़ में लोग अपनी समृद्ध वैदिक परम्पराओं को भूलते चले गए। लेकिन ये यज्ञ इतने प्रभावशाली होते थे कि अगर सही तरीके से किया जाए तो साधक को इच्छित फल की प्राप्ति होती है। इन यज्ञों का आयुर्वेदा के साथ गहरा संबंध है। अगर वैदिक साहित्य की बात करें तो उसमे रोगों की रोकथाम हेतु यज्ञ किया जाता था जिसे यज्ञोपैथी या यज्ञ चिकित्सा भी कहा जाता है। इसकी पूर्ण जानकारी के लिए आप वैदिक साहित्य का अध्यन कर सकते हैं यह आगे की शोध के लिए एक आधार ग्रन्थ भी है। इसमें विभिन्न बिमारियों को नष्ट करने की विधि, उनमे किस तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए, बिमारियों के कारण, आदि के बारे में विस्तार से लिखा गया है।
आयुर्वेदा में यज्ञ का क्या महत्त्व है?
प्रायः लोग यज्ञ को आध्यात्म से जोड़कर देखते हैं लेकिन यह किसी व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी सामान रूप से जरुरी है। प्रत्येक यज्ञ की एक विधि होती है जिसमे अलग अलग तरह की हवन सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही उसमे उच्चारण किये जाने वाले मंत्र भी भिन्न भिन्न होते हैं। इन सब का प्रभाव यज्ञ का अनुष्ठान करने वाले पर होता है। यज्ञ के दौरान अग्नि में जो हविष्य अर्पित किया जाता है, उससे किसी व्यक्ति के अंदर पाए जाने वालों तीन दोषों यानि वात, पित्त और कफ को संतुलित किया जाता है। यज्ञ में हवन के समय जो धुऑं निकलता है, उसके अंदर भी औषधीय गुण मौजूद होते हैं जो वातावरण को स्वच्छ करके रोगों का नाश करने में मदद करते हैं। यज्ञ चिकित्सा द्वारा किसी व्यक्ति को ना केवल मानसिक बल्कि शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से भी शांति व संतुष्टि मिलती है।
राजा दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ कराने का श्रेय श्रृंगी ऋषि को जाता है। प्रचलित कथा के अनुसार उन्होंने यज्ञ के बाद राजा दशरथ को खीर दिया था जिसे तीनों रानियों ने खाया और फिर माता कौशल्या के गर्भ से प्रभु श्री राम, सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न और कैकेयी के गर्भ से भरत का जन्म हुआ। जहां पर इस यज्ञ का आयोजन किया गया था वहां आज भी प्रत्येक वर्ष चैत्र पूर्णिमा के दिन से अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा होती है।