सड़क दुर्घटना में घायल परिवार के लिए मसीहा बने डॉ दुर्गेश शर्मा

बाटा मैट्रो स्टेशन के नज़दीक नेशनल हाईवे पर एक स्कूटी सवार अचानक अनियंत्रित होकर फिसल गया जिस कारण स्कूटी सवार आदमी, महिला व एक पाँच वर्षीय बच्चा घायल हो गया। नेहरू कॉलेज से घर आते समय डॉ दुर्गेश ने देखा कि किसी का एक्सीडेंट हो गया है और तीन लोग घायल है तभी उन्होंने अपनी गाड़ी से उन्हें स्वास्थ्य केंद्र ले जाकर तुरंत फर्स्ट ऐड देकर उनकी मद्दत की और और आगे सावधानी तक अपने घर पहुचवाने में मद्दत की। इस दौरान श्रीमान पुरशोत्तम सेनी फ़रीदाबाद डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग ऑफिसर, मधु भाटिया, मनदीप ने उनकी मद्दत की।

डॉ दुर्गेश ने बताया कि जब लोग बिना किसी स्वार्थ के ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं, तो इसी भाव को परोपकार कहा जाता है। एक अच्छा व्यक्ति वही होता है जो किसी भी आपातकालीन स्थिति में अपने किसी भी निजी स्वार्थ से हटकर दूसरों की मदद करता है। हम सभी ने अपने जीवन में कभी न कभी ऐसे व्यक्ति देखे होंगे, जिन्होंने बिना किसी लाभ के लोगों की सहायता की। भारत में सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, यहां साल 2022 में 4.61 लाख सड़क दुर्घटनाएं हुई जिनमें 1.68 लाख लोगों ने अपनी जान गवां दी। भारत के विधि आयोग के मुताबिक, अगर समय पर प्राथमिक चिकित्सा दी जाती तो इनमें से 50 फ़ीसदी लोगों की जान बचाई जा सकती थी।

डॉ दुर्गेश ने बताया कि दुर्घटना के बाद पहला घंटा बेहद ही अहम होता है, जिसमें जीवन और मृत्यु के बीच बेहद ही कम अंतर होता है। Golden hour कहे जाने वाली इस अवधि में अगर प्राथमिक चिकित्सा दी जाए, तो दुर्घटना में घायल व्यक्ति की गंभीर स्थिति को कम करने के साथ-साथ उसके बचने की संभावना भी बढ़ाई जा सकती है लेकिन सड़क दुर्घटना में घायलों की मदद करने से 75 फ़ीसदी लोग हिचकिचाते थे, क्योंकि उन्हें पुलिस और कानूनी कार्रवाई, और अस्पताल में कई घंटों तक रुकने जैसे झमेलों से डर लगता था। इस तरह की परेशानियों की वजह से ही ज़्यादातर लोग घायलों की मदद करने से हिचकिचाते रहे और सड़क दुर्घटना में घायल लोगों को समय पर मदद नहीं मिलती थी।

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