कुलपति डॉ. राज नेहरू को मिला महर्षि गुरु वशिष्ठ अवार्ड
कौशल शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए अभ्येति फाउंडेशन ने दिया अवार्ड
फरीदाबाद, 24 सितम्बर। श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राज नेहरू को अभ्येति फाउंडेशन द्वारा महर्षि गुरु वशिष्ठ अवार्ड से नवाजा गया है। फाउंडेशन की संस्थापक निदेशक सीमा भटनागर, सलाहकार रजत सक्सेना और जेईसी ग्रुप के निदेशक ललित सरावगी ने उन्हें यह अवार्ड प्रदान किया। कुलपति डॉ. राज नेहरू को यह अवार्ड कौशल शिक्षा के क्षेत्र एवं सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में अभूतपूर्व योगदान के लिए दिया गया। इससे पूर्व भी कुलपति डॉ. राज नेहरू को अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के कई अवार्ड हासिल हो चुके हैं। वह देश के पहले राजकीय कौशल विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति हैं और देश में उच्च शिक्षा में स्किल एजुकेशन का मॉडल स्थापित करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। यह अवार्ड प्रदान करते हुए अभ्येति फाउंडेशन की संस्थापक निदेशक सीमा भटनागर ने कहा कि कौशल गुरु के रूप में डॉ. राज नेहरू ने अभूतपूर्व काम किया है।
युवाओं को हुनर देकर रोजगार के साथ जोड़ने की दिशा में उनका मॉडल आज देश ही नहीं दुनिया में सराहा जा रहा है। कुलपति डॉ. राज नेहरू ने इस अवॉर्ड के लिए कृतज्ञता ज्ञापित की। इस अवसर पर उन्होंने ‘एसेंशियल लाइफ स्किल फॉर ए सक्सेसफुल करियर’ विषय पर विद्यार्थियों को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को पहले अपनी प्रतिभा और अभिरुचियों को पहचाना होगा और फिर उसी के अनुरूप अवसर पहचानने की क्षमता विकसित करनी होगी।
फिर कोई भी चुनौती उसके करियर में बाधा खड़ी नहीं कर सकती। कुलपति डॉ. राज नेहरू ने कहा कि अपने भीतर कौशल विकसित कर कोई भी विद्यार्थी सफलता की उड़ान भर सकता है। हर विद्यार्थी में कोई न कोई कौशल अवश्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हुनर है तो कद्र है। कुलपति डॉ. राज नेहरू ने कहा कि हमने श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय में इसका सफल प्रयोग किया है। शिक्षा के इस दोहरे मॉडल में विद्यार्थी सफलतापूर्वक पढ़ाई के साथ-साथ कमाई कर रहे हैं। कुलपति डॉ. राज नेहरू में कहा कि जो विद्यार्थी अपनी क्षमता को पहचानने में सक्षम हो जाएंगे, उनकी सफलता को कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने विद्यार्थियों को जीवन में कौशल का महत्व समझाते हुए करियर निर्माण के लिए प्रेरित किया। कुलपति डॉ. राज नेहरू ने अन्वेषण और नवाचार पर बल देते हुए विद्यार्थियों को सिंपैथी और इंपैथी का मर्म भी समझाया।