एकॉर्ड में 5 साल के बच्चे का सफल किडनी ट्रांसप्लांट
मां ने किडनी देकर अपने लाड़ले को दिया ने जीवन
फरीदाबाद, 31 अगस्त । ग्रेटर फरीदाबाद सेक्टर 86 स्थित एकॉर्ड अस्पताल में 5 साल के बच्चे का सफल किडनी ट्रांसप्लांट किया गया है। बच्चे की मां ने अपने लाड़ले को किडनी देकर उसे नया जीवन दिया। आपरेशन के बाद बच्चा और उसकी मां पूरी तरह स्वस्थ है। इस सफल ट्रांसप्लांट को अस्पताल नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. जितेंद्र कुमार तथा यूरोलाजिस्ट डॉ. सौरभ जोशी, डॉ. वरुण कटियार की टीम ने अंजाम दिया। बता दें कि देश में 3 वर्षीय यंगेस्ट बच्चे का किडनी ट्रांसप्लांट का श्रेय भी डॉ. जितेंद्र को जाता है।
उनके नेतृत्व में इस सफल ऑपरेशन को किया गया था। इस मौके पर अस्पताल चेयरमैन डॉ. प्रबल रॉय ने सफल ऑपरेशन टीम को बधाई दी। बिहार निवासी 5 वर्षीय ऋषभ काफी समय से क्रोनिक किडनी रोग और हाइपरटेंशन से पीड़ित था। वहां किडनी रोग की बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के आभाव के कारण वह डायलिसिस के लिए एकॉर्ड अस्पताल आता था। यहां बच्चे को बेहतर डायलिसिस के लिए एक अलग माहौल दिया गया। नर्सिंग स्टाफ के साथ वह लूडो और अन्य गेम खेलते हुए डायलिसिस करवा लेता था। लेकिन अच्छी गुणवत्ता का जीवन देने का एक मात्र तरीका था किडनी ट्रांसप्लांट। यूरोलाजिस्ट डॉ. सौरभ जोशी ने कहा कि
बच्चे की मां ने अपने बच्चे को किडनी देने की इच्छा जताई।
बच्चे की मां ने अपने बच्चे को किडनी देने की इच्छा जताई।
मां को डोनेशन के लिए फिट पाया गया। स्वास्थ्य विभाग कि समिति की सहमति के बाद 5 साल के बच्चे का सफल ट्रांसप्लांट हुआ है। प्रेस वार्ता में अस्पताल न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट चेयरमैन डॉ. रोहित गुप्ता, किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. अनीश नंदा मौजूद रहे। अस्पताल नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. जितेंद्र कुमार ने बताया कि मां की बड़ी किडनी को एक छोटे बच्चे में फिट करना पीडिएट्रिक किडनी ट्रांसप्लांट में काफी चुनौतीपूर्ण था। ऑपरेशन के दौरान वाइटल लक्षणों पर पूरी निगरानी रखनी पड़ती है। इसी तरह ऑपरेशन के बाद भी फ्लूड मैनेजमेन्ट और इम्युनोसप्रेसेन्ट केयर करते हैं। यह ऑपरेशन हमारी टीम के लिए और भी मुश्किल था, क्योंकि हमें व्यस्क की किडनी को एक छोटे बच्चे में ग्राफ्ट करनी थी। जहां स्पेस भी सीमित होता है।
5 घंटे चला ऑपरेशन के बाद ट्रांसप्लांट रहा सफल
डॉ. सौरभ जोशी ने बताया कि कई मुश्किलों के बीच, यह ऑपरेशन 5 घंटे तक चला। जिसमें बच्चे की मां से किडनी को हार्वेस्ट किया गया और बच्चे के शरीर में इसे मेजर वैसल्स कॉमन इलियक आर्टरी और आईवीसी के साथ कनेक्ट किया गया। ऑपरेशन के तुरंत बाद पेशाब फिर से पूरी तरफ से बनना शुरू हो गया है। इससे हम आश्वस्त हो गए कि ट्रांसप्लांट सफल रहा।
बड़ो से पीडिएट्रिक किडनी ट्रांसप्लांट का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र कुमार ने कहा कि किडनी की फेलियर बच्चों में भी पाई जाती है। इसका मुख्य कारण बचपन से किड़नी का निर्माण कुदरती रूप से कमजोर होना। शुरुआत में बच्चों की डायलिसिस की जाती है और जब वह बच्चा बड़ा हो जाता है तो उचित वक्त पर किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है। बच्चों में किडनी ट्रांसप्लांट करना तकनीकी रूप से काफी जटिल होता है क्योंकि डोनट की किडनी बड़ी होती ही और बच्चे में जहां किडनी ग्राफ्ट करनी होती है। वहां इतनी जगह नहीं होती है और किडनी छोटी बड़ी होने के कारण काफी चुनौती पूर्ण होता है। लेकिन, एकॉर्ड की टीम ने यह चैलेंज स्वीकार किया और बच्चे का सफल किडनी ट्रांसप्लांट किया।