समलैंगिक विवाह के विरुद्ध एकजुट हुए सामाजिक-धार्मिक संगठन,रोक लगाने के लिए दिया मांग पत्र
राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन जिला उपायुक्त को सौंपा, सुप्रीम कोर्ट से निवेदन समलैंगिक विवाह पर लगे रोक
फरीदाबाद – 26 अप्रैल। समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह के विरुद्ध एकजुट हुए सामाजिक-धार्मिक संगठनों ने रोक लगाने के लिए मांग पत्र दिया है। राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन जिला उपायुक्त के माध्यम से समलैंगिक विवाह पर तुरंत रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया गया है। विश्वम्भरा सेवा न्यास सहित फरीदाबाद के अन्य संगठनों की महिला प्रतिनिधि काफी संख्या में उपस्थित रहीं। सेक्टर 12 स्थित लघु सचिवालय पर विश्वम्भरा सेवा न्यास का प्रतिनिधिमंडल अन्य संगठनों की महिला स्वयंसेविकाओं के साथ एकत्रित हुआ। न्यास की अध्यक्ष रजनी गुलाटी ने बताया की उन्होंने आज अन्य संगठनों के सहयोग से राष्ट्रपति के नाम एक मांगपत्र जिला उपायुक्त विक्रम के माध्यम से दिया जिसमें भारतीय संस्कृति एवं सामाजिक सामंजस्य के लिए गंभीर समस्या बनने वाले समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह के विरुद्ध तुरंत रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है। गुलाटी ने बतया कि समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह को मान्यता नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि यह हमारी संस्कृति -सभ्यता पर आघात होने जा रहा है।
फरीदाबाद – 26 अप्रैल। समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह के विरुद्ध एकजुट हुए सामाजिक-धार्मिक संगठनों ने रोक लगाने के लिए मांग पत्र दिया है। राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन जिला उपायुक्त के माध्यम से समलैंगिक विवाह पर तुरंत रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया गया है। विश्वम्भरा सेवा न्यास सहित फरीदाबाद के अन्य संगठनों की महिला प्रतिनिधि काफी संख्या में उपस्थित रहीं। सेक्टर 12 स्थित लघु सचिवालय पर विश्वम्भरा सेवा न्यास का प्रतिनिधिमंडल अन्य संगठनों की महिला स्वयंसेविकाओं के साथ एकत्रित हुआ। न्यास की अध्यक्ष रजनी गुलाटी ने बताया की उन्होंने आज अन्य संगठनों के सहयोग से राष्ट्रपति के नाम एक मांगपत्र जिला उपायुक्त विक्रम के माध्यम से दिया जिसमें भारतीय संस्कृति एवं सामाजिक सामंजस्य के लिए गंभीर समस्या बनने वाले समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह के विरुद्ध तुरंत रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है। गुलाटी ने बतया कि समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह को मान्यता नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि यह हमारी संस्कृति -सभ्यता पर आघात होने जा रहा है।
देश एवं राष्ट्रहित में हमारा जन जागरण अभियान कार्य जारी रहेगा। उपरोक्त मांग पत्र में बताया गया कि भारत देश, आज, सामाजिक, आर्थिक क्षेत्रों की अनेक चुनौतियों का, सामना कर रहा है, तब विषयांतर्गत विषय को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनने एवं निर्णीत करने की कोई गंभीर आवश्यकता नहीं है। देश के नागरिकों की बुनियादी समस्याओं जैसे गरीबी उन्मूलन, नि:शुल्क शिक्षा का क्रियान्वयन, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार, जनसंख्या नियंत्रण की समस्या, देश की पूरी आबादी को प्रभावित कर रही है, उक्त गंभीर समस्याओं के संबंध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय से निर्णय लेने के लिए निवेदन किया गया है। विश्वम्भरा सेवा न्यास फरीदाबाद की सचिव सुषमा तोलम्बिया ने बताया कि विशंभरा सेवा न्यास फरीदाबाद किस सचिव सुषमा तोलंबिया ने बताया कि हमारे हिंदू जीवन पद्धति को विश्व देख रहा है। यथासंभव अनुसरण भी कर रहा है। यह हमारे लिए गर्व एवं गौरव का विषय है।
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भारतीय संस्कृति एवं संस्कार की धरोहर की चाबी को हम नई पीढ़ी को सौंपते हैं। जिसको लेकर हमारी भावी पीढी गृहस्थ आश्रम मे या जीवन मे प्रवेश करती है। हमारे 16 संस्कारों में विवाह संस्कार प्रमुख है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति मे विवाह कान्ट्रैक्ट नहीं है जेसा अन्य देश या महजब मे होता है। यह एक ऐसा रिश्ता है। जिसके लिए हम जीवन भर ही नहीं अगले जन्म मे भी प्रतीक्षा करते है। विवाह संस्कार को विकृत होने से रोकने के लिए चिंता नहीं चिंतन करने के लिए हम सभी को एकजुटता दिखाने की आवश्यकता है। मांग पत्र के माध्यम से माननीय न्यायालय से विनम्र निवेदन किया गया है कि इस विषय की गंभीरता का ध्यान रखा जाए। विश्वम्भरा सेवा न्यास फरीदाबाद की कोषाध्यक्ष ममता मलिक ने बताया कि भारत में विवाह का, एक सभ्यतागत महत्व है और एक महान और समय की कसौटी पर खरी उतरी, वैवाहिक संस्था को, कमजोर करने के किसी भी प्रयास का, समाज द्वारा मुखर विरोध किया जाना चाहिये।
भारतीय सांस्कृतिक सभ्यता पर, सदियों से, निरन्तर आघात हो रहे हैं, फिर भी, अनेक बाधाओं के बाद भी, वह बची हुई है। अब स्वतंत्र भारत में इसे अपनी सांस्कृति जड़ों पर, पश्चिमी विचारों, दर्शनों एवं प्रथाओं के अधिरोपण का सामना करना पड़ रहा है जो इस राष्ट्र के लिये व्यवहारिक नहीं है। इस महत्वपूर्ण विषय पर न्याय की स्थापना एवं न्याय तक पहुंचने के मार्ग को सुनिश्चित करने तथा न्यायपालिका की विश्वसनीयता को कायम रखने के लिये, लंबित मामलों को पूरा करने एवं महत्वपूर्ण सुधार करने के स्थान पर, एक काल्पनिक मुद्दे पर न्यायालयीन समय एवं बुनियादी ढांचे को नष्ट किया जा रहा है, जो सर्वथा अनुचित है।